Ve Ankhen MCQ वे ऑंखें MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 14
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वे आँखें कविता का सारांश मूल भाव
प्रस्तुत पाठ या कविता वे आँखें कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित है | यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है | युगों- युगों से शोषण के शिकार किसानों का जीवन कवि को आहत करता है | कवि के अनुसार, स्वतंत्रता पश्चात् भी भारत में कृषकों के हक़ में तात्कालीन व्यवस्था या शासन की तरफ़ से कोई निर्णायक फैसला नहीं लिया गया और किसान की स्थिति बद से बदतर होती चली गई | इस कविता में विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है | प्रस्तुत कविता ऐसे ही दुश्चक्र में फंसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है |
Watch awesome videosवे आँखें कविता की व्याख्या
अंधकार की गुहा सरीखी
उन अाँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन !
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा अाँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका |
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि जो शोषित किसान हैं, उनकी आँखें मानो अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं, जिनसे मेरा मन भयभीत है | ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें दूर तक कोई कष्टप्रद व दुःख का मौन रुदन भरा हुआ है |
आगे कवि कहते हैं कि वह सदैव स्वाधीन किसान था | उसके अपने खेत थे | उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था | परन्तु, आज संसार ने उसे समस्याओं के मँझधार में छोड़कर उससे दूर चला गया है | आज वह किसान अकेला पड़ गया है |
लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से !
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा |
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि एक समय था, जब किसान की आँखों के सामने उसके अपने खेत लहलहाते नज़र आते थे | लेकिन अब उन खेतों से उसे बेदखल कर दिया गया है अर्थात् जमींदारों ने उसके खेत हड़प लिए हैं | कभी इन खेतों के तिनके-तिनके में हरियाली का वर्चस्व था, जो उसके जीवन को सुखमय बनाती थी | अफ़सोस, आज वह सब कुछ कहीं गुम हो गया है |
आगे कवि पंत जी कहते हैं कि किसानों की आँखों का तारा अर्थात् उनके जवान बेटे, जिसका चित्र अब भी उसकी आँखों में घूमता रहता है | कभी किसानों के जवान बेटों को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था |
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी !
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती ?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में,
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि जब किसान कर्ज में डूब गए तो महाजन ने किसानों के घर-द्वार बेच दिए और अपने ब्याज की कौड़ी-कौड़ी वसूली ली | किसानों को उनके घर से बेघर कर दिया | किसानों को अत्यधिक पीड़ा तब हुई, जब उनके बैलों को भी नीलाम कर दिया गया | यह बात आज भी किसानों की आँखों में चुभती है, जिसके कारण उन्हें गहरा दर्द मिला और उनके रोज़गार का साधन छीनने का कारण बना |
आगे कवि पंत जी कहते हैं कि किसान के पास उजरी नाम की दुधारू अर्थात् दूध देने वाली गाय थी, जो उसके सिवा किसी और को अपने करीब दूध दुहने नहीं आने देती थी | मजबूरीवश किसान को उसे भी बेचना पड़ा | इस बात का किसान को बहुत दुःख है | ये तमाम दृश्य उसकी आँखों में अब भी नाचते हैं | किसान की सुख की खेती उजड़ गई, जिसके कारण वह उदास व दुखी है |
बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली, ---आँखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर !
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि गरीब किसान की पत्नी दवा के अभाव में चल बसी | यह सोचकर किसान की आँखों में आँसू आ जाते हैं | उचीत देख-रेख न होने के कारण पत्नी की मृत्यु के पश्चात् किसान की दुधमुँही बच्ची भी दो दिन बाद मर गई |
आगे कवि पंत जी कहते हैं कि घर में एक विधवा बहु बची हुई थी, जिसका नाम लक्ष्मी था | परन्तु, अफ़सोस कि उसे अपने पति की मौत का जिम्मेदार माना जाता था | एक ऐसा काला दिन भी आया, जब गाँव के कोतवाल ने उसे बुलवाकर उसकी इज्जत लूट ली | परिणाम स्वरूप, किसान के बहु ने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली | अत: किसान का पूरा परिवार ही बिखर गया |
खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती |
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती |
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि खैर, किसान को पत्नी की मृत्यु पर शोक नहीं है | क्योंकि वह उसे पैर की जूती समान समझता है | एक के जाने के बाद दूसरी आ सकती है | पर किसान अपने जवान बेटे की मौत से बेहद दुखी है | उसकी छाती पर कष्ट रूपी साँप लोटते हैं |
आगे कवि पंत जी कहते हैं कि किसान जब अपने पिछले सुखमय जीवन को स्मरण करता है तो उसकी आँखों में एक पल के लिए खुशियों की चमक समा जाती है | पर जैसे ही अगले पल किसान अपने वर्तमान को देखता है तो उसकी दृष्टि शून्य में गड़ जाती है और उसकी दृष्टि तीखी नोक के समान चुभने लगती है |
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