Saturday, December 5, 2020

Pathik MCQ पथिक MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 13

Pathik MCQ पथिक MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 13

Attempt the quiz here :
https://quizizz.com/join/quiz/5fc73586f3c71b001b141528/start
https://quizizz.com/join/quiz/5fc73ca4d6ef95001b8f1e10/start
https://quizizz.com/join/quiz/5fc73d727e108b001bbb40c2/start

प्रस्तुत पाठ या कविता पथिक कवि रामनरेश त्रिपाठी जी के द्वारा रचित है | प्रस्तुत अंश पथिक शीर्षक खंड काव्य के पहले सर्ग से लिया गया है | 

इस संसार के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक है | प्रकृति के प्रति पथिक यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है | किसी साधुजन के द्वारा संदेश ग्रहण करके पथिक देशसेवा का व्रत लेता है | पथिक, सागर के सौंदर्य देखकर उसपर मुग्ध हो गया है | प्रकृति के इस अद्भुत सौन्दर्य को पथिक मधुर मनोहर उज्ज्वल प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है | स्वच्छंदतावादी इस रचना में प्रेम, भाषा एंव कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है.







Amazing Quotes Stories Watch awesome videos

पथिक कविता की व्याख्या 
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला | 
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला | 
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है | 
घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है ||

रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है | 
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है |  
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के- 
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के ||

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि नभ या आसमान में बादलों का समूह प्रतिक्षण नूतन या नया वेश धारण करके रंग-बिरंगे प्रतीत हो रहे हैं, जो मानो सूर्य के सामने ही थिरक रहे हों | आगे कवि कहते हैं कि नीचे मन को हरने वाला नीला समुद्र है, तो वहीं ऊपर नीला गगन या आकाश विद्यमान् है | प्रकृति के उक्त नज़ारे को देखकर ही पथिक का मन चाहता है कि वह भी मेघ पर बैठकर 
समुद्र और गगन दोनों के दरम्यान विचरण करे | 

आगे कवि के अनुसार, पथिक कहता है कि मानो रत्नाकर अर्थात् समुद्र गर्जना कर रहा है और मलय पर्वत से आने वाली ख़ुशबूदार हवाएँ भी बह रही हैं | तत्पश्चात्, पथिक अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि इन दृश्यों से हरदम मेरे हृदय में उत्साह भरा रहता है | आगे पथिक अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहता है कि इस विशाल, विस्तृत और महिमामय रत्नाकर के लहरों पर बैठकर इसके 
घर रूपी विशालकाय जलमंडल के चारों दिशा में भ्रमण करता रहूँ | 


निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा | 
कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा | 
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी | 
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी || 

निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है | 
लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है |
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी ? 
अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक सूर्योदय का अद्भुत वर्णन करते हुए कहता है कि समुद्र की सतह से सूरज का बिंब अधूरा सा निकलता हुआ प्रतीत हो रहा है | अर्थात् आधा सूरज जल के अंदर है तथा आधा बाहर दिखाई दे रहा है | आगे कवि के अनुसार, पथिक को ऐसा आभास हो रहा है, मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कँगूरा हो | सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य पेश करता है | पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो | 

आगे कवि कहते हैं कि समुद्र भयमुक्त होकर पूरी दृढ़ता से तथा गंभीर भाव लिए गरज रहा है | जब लहरें एक-दूसरे पर आ रही हैं, तो वह दृश्य सचमुच अत्यधिक सुंदर लग रहा है | तत्पश्चात्, पथिक अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम अनुभव करो हृदय से हे ! अनुराग-भरी कल्याणी और बताओ कि यहाँ जो सुख मिल पा रहा है, क्या इससे अधिक सुख कहीं और भी मिल सकता है ? अर्थात् ऐसा सौंदर्य तुम्हें कहीं और मिल सकता है क्या ? 


जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है | 
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है | 
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है | 
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है || 

उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है | 
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है | 
पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं | 
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं --  


भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ रामनरेश त्रिपाठी जी के द्वारा रचित कविता पथिक से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध
रामनरेश त्रिपाठी
होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक के अनुसार, जब आधी रात में गहरा अंधेरा सम्पूर्ण जगत को ढक लेता है तथा अंतरिक्ष या आसमान की छत पर तारे बिखेर देता है अर्थात् आकाश में तारों का अस्तित्व आ जाने से वे चमकने लगते हैं | उस समय मुस्कराते हुए मुख से संसार का स्वामी अर्थात् ईश्वर का धीमी गति से आगमन होता है और वह समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मधुर गीत गाने में मग्न हो जाता है |

आगे पथिक कहता है कि संसार के स्वामी अर्थात् ईश्वर के मधुर गीत पर मुग्ध होकर आकाश में चाँद भी हँसने लगता है | पथिक प्रकृति का सुन्दर चित्रण करते हुए कहता है कि वृक्ष विविध पत्तों व फूलों से अपने तन को सजा लेते हैं | पक्षियों से भी खुशी सँभाली नहीं जाती और वे सुंदर प्राकृतिक दृश्य पर मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं | फूल भी सुख रूपी आनंद के साथ साँस लेकर पूरे वातावरण को सुगंधित कर देते हैं | 

वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं | 
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं | 
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी | 
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी || 

कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी | 
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी | 
स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है | 
अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक प्रकृति के सौंदर्य से बेहद प्रभावित है | आगे पथिक कहता है कि प्रकृति की सौंदर्य में बढ़ोत्तरी करने के लिए वन, उपवन, पहाड़, समुद्र तल व वनस्पतियों पर मेघ बरसने लगते हैं | तो मैं आत्मिक रूप से भावुक हो जाता हूँ और मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं | तत्पश्चात्, पथिक अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि समुद्र की लहरों, तटों, तिनकों, पेड़ों, पर्वतों, आकाश, किरन व बादलों पर लिखी गई विश्व को मोहित करने वाली मधुर कहानी को पढ़ो | 

आगे पथिक कहता है कि प्राकृतिक सौंदर्य की यह आडंबररहित मधुर व उज्ज्वल प्रेम कहानी मनोहर व पवित्र है | तत्पश्चात्, वह कहता है कि मेरी भी चाहत है कि मैं इस प्रेम-कहानी का अक्षर बनके विश्व की वाणी बन जाऊँ | सचमुच यह प्राकृतिक सौंदर्य स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित और सदा शांति व सुख प्रदान करने वाली है | पथिक आनंदित होकर कहता है कि यहाँ प्रकृति रूपी प्रेम का राज्य बेहद सुंदर है |

No comments:

Post a Comment

MCQ Formal Letter Letter to Editor Class 10th 11th 12th Term-1 || Formal Letter format

MCQ Formal Letter Letter to Editor Class 10th 11th 12th Term-1 || Formal  Letter format  1] A Formal Letter Should Be _________ To Have The ...