Meera Ke Pad MCQ मीरा के पद MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 12
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मीरा के पद पाठ की सारांश
प्रस्तुत पाठ या पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा संकलित मीरा मुक्तावली से लिए गए हैं |प्रस्तुत पहले पद में कवयित्री मीरा ने कृष्ण से अपनी अनन्यता व्यक्त की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुख प्रकट किया है | दूसरे पद में, प्रेम रस में डूबी हुई कवयित्री मीरा समस्त रीति-रिवाजों और बंधनों से मुक्त होने और गिरिधर के स्नेह के कारण अमर होने की बात कर रही हैं
Watch awesome videosमीरा के पद की व्याख्या
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर ! तारो अब मोही
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री मीरा के द्वारा रचित है, जो पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा संकलित 'मीरा मुक्तावली' से लिए गए हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री मीरा मोर-मुकुट धारण किए हुए श्रीकृष्ण को अपना पति मानते हुए कहती हैं कि उनके सिवा इस जगत में मेरा कोई दूसरा नहीं | आगे कवयित्री कहती हैं कि मैंने कुल की मर्यादा का भी ध्यान छोड़ दिया है तथा संतों के साथ उठते-बैठते लोक-लज्जा सब कुछ त्यागकर स्वयं को कृष्ण-भक्ति में लीन कर लिया है | कवयित्री मीरा कहती हैं कि कृष्ण के प्रेम रूपी बेल को सींचने के लिए मैंने अपने आँसुओं को नि:स्वार्थ भाव से न्यौछावर किया है | फलस्वरूप, जिस बेल के बढ़ने से आनंद रूपी फल की प्राप्ति हुई है | आगे कवयित्री एक दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार दूध में मथानी डालकर दही से मक्खन निकाला जाता है और शेष छाछ को पृथक कर दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार मीरा ने भी सांसारिकता के ढकोसलेपन से स्वयं को दूर रखा है और अपनी सच्ची और आत्मिक भक्ति से श्रीकृष्ण के प्रेम को प्राप्त किया है | आगे कवयित्री मीरा कहती हैं कि जब मैं भक्तों को देखती हूँ, तो मुझे प्रसन्नता होती है और उन लोगों को देखकर मुझे दुख होता है, जो सांसारिकता के जाल में फँसे हुए हैं | मीरा ख़ुद को श्रीकृष्ण की दासी मानती हैं और श्रीकृष्ण से स्वयं का उद्धार करने की कामना करती हैं |
(2)- पग घुंघरू बांधि मीरां नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची,
लोग कहै, मीरां भइ बावरी; न्यात कहै कुल-नासी,
विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरां हाँसी,
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री मीरा के द्वारा रचित है, जो पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा संकलित 'मीरा मुक्तावली' से लिए गए हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री मीरा कहती हैं कि वह कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो गई हैं तथा पैरों में घुँघरू बाँधकर नाचने में मग्न है | कवयित्री मीरा कृष्ण के प्रेम में इतना रसविभोर हो गई हैं कि लोग उसे पागल की संज्ञा देने लगे हैं | उनके सगे-संबंधी कहते हैं कि ऐसा करके वह कुल का नाम ख़राब कर रही है | आगे कवयित्री मीरा कहती हैं कि राणा जी ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा था, जिसे वह हँसते-हँसते पी ली और अमरत्व को प्राप्त हुई | आगे कवयित्री कहती हैं कि यदि प्रभु की भक्ति सच्चे मन से किया जाए तो वे सहजता से प्राप्त हो जाते हैं | ईश्वर को अविनासी की संज्ञा इसलिए दी गई है, क्योंकि वे नश्वर हैं |
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