Friday, December 4, 2020

Bachche Kaam Par Ja Rahe Hain MCQ बच्चे काम पर जा रहे हैं MCQ Class 9 Hindi Hindi Kshitij Chapter 17

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बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता का सारांश प्रस्तुत पाठ या कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं कवि राजेश जोशी जी के द्वारा रचित है | इस कविता के माध्यम से कवि राजेश जोशी जी के द्वारा बच्चों से बचपन छीन लिए जाने की जो आन्तरिक पीड़ा है, उसे व्यक्त की गई है | कवि ने सामाज की उस अन्यायपूर्ण व्यवस्था की ओर संकेत किया है, जिसमें कुछ बच्चे खेल, शिक्षा और जीवन के आनंदित उमंगों से वंचित हो जाते हैं | कवि बच्चों को काम पर जाते देख दुःख से भर जाते हैं | वे अफसोस जताते हुए कहते हैं कि बच्चे खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने के दिन में काम करने को विवश हैं | अत: कवि अपनी इस कविता के माध्यम से समाज में जागरूकता लाकर बच्चों के मासूम बचपन को सुरक्षा प्रदान करना चाहते हैं | ताकि बच्चे अपने नैसर्गिक स्वभाव का आनंद ले पाए | Bachche Kaam Par Ja Rahe Hain MCQ बच्चे काम पर जा रहे हैं MCQ Part 1





च्चे काम पर जा रहे हैं की व्याख्या भावार्थ 

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि जोशी जी के द्वारा बाल-श्रम के ज्वलंत मुद्दे पर बल देने का प्रयास किया गया है | कवि कहते हैं कि सुबह-सुबह सड़कों पर कोहरे छाए हुए हैं और बच्चे अपनी दीनता का बोझ कंधों पर लेकर अपने-अपने घरों से निकल पड़े हैं काम करने के लिए | अर्थात्, इन बच्चों का बचपन ही छीन गया | खेलने-कूदने तथा पढ़ने-लिखने के समय में बच्चे काम करने को मजबूर हैं | ताकि दो रोटी की व्यवस्था करके पेट की आग बुझाया जा सके | आगे कवि कहते हैं कि मासूम बच्चों का खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना सब छूट गया है और वे काम पर जा रहे हैं..., ये हमारे लिए सबसे शर्मनाक और भयानक बात है | बच्चे काम पर जा रहे हैं..., ये विवरण की तरह लिखना ही काफी नहीं है | बल्कि समाज की अन्यायपूर्ण व्यवस्था से ये प्रश्न पूछना चाहिए कि -- आखिर बच्चे काम पर क्यूँ जा रहे हैं ? क्यूँ उनका मासूम बचपन काम की भट्टी में झोंका जा रहा है ? 

(2)- क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के निचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं |
राजेश जोशी
राजेश जोशी
कवि राजेश जोशी जी मासूम बच्चों की दुर्दशा पर बहुत दुखी हैं | बच्चों को लेकर वे अनेक प्रश्नों से भरे हुए हैं | वे बच्चों के काम करने पर आपत्ति जताते हुए सवाल पूछ रहे हैं कि --- क्या बच्चों के खेलने वाली गेंदों को अंतरिक्ष निगल गया है ? क्या बच्चों के किताबों को दीमकों ने अपना खुराक बना लिया है ? या फिर बच्चों के सारे खिलौने काले पहाड़ के नीचे आकर दब गए हैं ? क्या ये बच्चे जिन मदरसों या विद्यालयों में बैठकर शिक्षा हासिल किया करते थे, उन मदरसों की इमारतें धवस्त हो गई हैं ? या फिर वे सारे मैदान, बगीचे और घरों के आँगन खत्म हो गए हैं, जहाँ बच्चे खेला व टहला करते थे | कवि राजेश जोशी जी के द्वारा उक्त पंक्तियों और प्रश्नों में बेहद मार्मिक और बच्चों के प्रति सहानुभूति के भाव प्रस्फुटित हुए हैं | उन्हें बच्चों का काम पर जाना बिल्कुल गैरकानूनी लग रहा है तथा वे बच्चों को उनके अधिकार दिलाने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं | 

(3)- तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह
कि हैं सारी चींजे हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं | कवि कहते हैं कि यदि बच्चों के खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने की सारी चीजें सचमुच नष्ट हो गई हैं, तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ? ये तो बहुत भयानक है | तत्पश्चात्, कवि कहते हैं कि इससे भी भयानक तो तब हो जाती है, जब बच्चों के खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने की सारी चीजें यथावत् रहती हैं, फिर भी कुछ बच्चे इन चीजों से दरकिनार नजर आते हैं | ऐसे बच्चों को देखकर कवि हताश और निराश हो जाते हैं | कवि सोचते हैं कि बच्चों के आनंद और पढ़ाई की सारी चीजें मौजूद रहने पर भी उन्हें दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते हुए अपने-अपने काम पर जाना पड़ रहा है | वे काम पर न भी जाना चाहें, तो उनकी विवशता उन्हें जबर्दस्ती ले जा रही है | 
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