Thursday, December 3, 2020

Raskhan Ke Savaiye MCQ रसखान के सवैये MCQ Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11


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रसखान के सवैये पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ में कवि रसखान के सवैये को संकलित किया गया है | कवि रसखान के द्वारा रचित पहले और दूसरे सवैये में कृष्ण और कृष्ण-स्थली के बारे में कवि का भाव प्रस्फुटित हुआ है | तीसरे सवैये में कृष्ण के अतुलनीय सौंदर्य के प्रति गोपियों के प्रेम का चित्रण हुआ है, जिसमें गोपियाँ कृष्ण का रूप धारण कर लेने की चाह से भरी हुई हैं, ताकि वे सभी कृष्ण से कभी पृथक न हो सके | कवि रसखान अपने चौथे और अंतिम सवैये में कृष्ण के मनोहर मुरली की धुन और उनकी आकर्षक मुस्कुराहट के प्रभाव को वर्णित किया है तथा कवि गोपियों की विवशता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गोपिया चाहकर भी श्री कृष्ण के प्रेम के अभाव में नहीं रह सकतीं.



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रसखान के सवैया का अर्थ

मानुस हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन | 
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन || 
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन | 
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन || 

भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि 'रसखान' के 'सवैये' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि यदि उनका पुनः जन्म होता है, तो वे मनुष्य योनि में जन्म लेकर ब्रज के ग्वालों के साथ रहना चाहते हैं | यदि उनका पशु के रूप में जन्म होता है, तो ब्रज में ही रहकर वे नन्द की गायों के साथ विचरण करना चाहते हैं | यदि उनका पत्थर के रूप में जन्म होता है, तो वे उस पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं, जिसे हरि अर्थात् श्री कृष्ण ने अपनी तर्जनी पर उठाकर पूरे ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से रक्षा किया था | यदि उनका पक्षी के रूप में जन्म होता है, तो वे यमुना किनारे कदम्ब की डालों पर डेरा डालना चाहते हैं | कवि के उक्त चाहतों से ज्ञात होता है कि वे किसी हाल में भी श्री कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहते हैं | चाहे उन्हें इसके लिए किसी भी योनि में जन्म लेना पड़े | 

(2) या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं | 
रसखान के सवैये
रसखान के सवैये
आठहुँ सिद्धि, नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं || 
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं | 
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं || 

भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि 'रसखान' के 'सवैये' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि  यदि उन्हें गोकुल के ग्वालों की लाठी और कम्बल हेतु तीनों लोक का राज त्यागना पड़े, तो वे ऐसी चेष्टा करने के लिए तैयार हैं | कवि कहते हैं कि वे नंद की गायों को चराने का सुख प्राप्त करने के लिए आठों सिद्धि और नौ निधियों का सुख भी त्यागने को तत्पर हैं | कवि अपनी खुली आँखों से ब्रज के वन, बागों तथा सरोवरों को पूरा जीवन निहारने की चाह रखते हैं | कवि आगे कहते हैं कि वे पवित्र ब्रज-भूमि की कंटिली झाड़ियों के लिए स्वर्ण के सौ महल भी त्यागने को तैयार हैं | 

(3) मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी | 
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी || 
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी | 
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी || 

भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि 'रसखान' के 'सवैये' से उद्धृत हैं | कवि के द्वारा रचित इन पंक्तियों में कृष्ण के अतुलनीय सौंदर्य के प्रति गोपियों के प्रेम का चित्रण हुआ है, जिसमें गोपियाँ कृष्ण का रूप धारण कर लेने की चाह से भरी हुई हैं, ताकि वे सभी कृष्ण से कभी पृथक न हो सके | गोपियाँ कृष्ण के लिए सिर के ऊपर मोरपंख रखने को तैयार हैं तथा गुंजों की माला भी पहनने को तैयार हैं | गोपियाँ पीला वस्त्र धारण करके वन में गायों और ग्वालों के साथ-साथ भ्रमण करने को भी तैयार हैं | गोपियाँ श्री कृष्ण के लिए हर स्वांग करने-रचने के लिए तत्पर हैं, पर वे मुरलीधर अर्थात् कृष्ण के होठों से लगी बांसुरी को अपने होठों से लगाने को इच्छुक नहीं हैं | 

(4)  काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै | 
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै || 
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै | 
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै || 

भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि 'रसखान' के 'सवैये' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कृष्ण के मनोहर मुरली की धुन और उनकी आकर्षक मुस्कुराहट के प्रभाव को वर्णित किया है तथा कवि गोपियों की विवशता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गोपियाँ चाहकर भी श्री कृष्ण के प्रेम के अभाव में नहीं रह सकतीं हैं | प्रस्तुत पंक्तियों में गोपियाँ कहतीं हैं कि जब कृष्ण की मुरली की मधुर और मनोहर धुन गूंजेगी, तो वे अपने-अपने कानों में अंगुली डाल लेंगी, ताकि उन्हें वो मधुर संगीत सुनाई न पड़े | क्योंकि कृष्ण के मुरली की धुन में मग्न होकर गायें भी अटारी पर चढ़कर गाने लगती हैं | ब्रजवासी ये कह रहे हैं कि जब कृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि वातावरण में गूंजेगी, तो उसकी धुन सुनकर, गोपियों की मुस्कान संभाले नहीं सम्भलेगी तथा उस मुस्कान से ज्ञात हो जाएगा कि वे कृष्ण के प्रेम में डूबी हैं | 




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