Mere Bachpan Ke Din MCQ मेरे बचपन के दिन MCQ Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7
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मेरे बचपन के दिन पाठ का सारांश
मेरे बचपन के दिन पाठ या संस्मरण लेखिका महादेवी वर्मा जी के द्वारा लिखित है | इस संस्मरण के माध्यम से लेखिका अपने विद्यालय के दिनों की बात का उल्लेख की हैं | प्रस्तुत संस्मरण में लेखिका के द्वारा अपने सहपाठिनों और समाज में लड़कियों के प्रति सोच, छात्रावास का जीवन और आजादी के आंदोलनों का सजीव वर्णन किया गया है | लेखिका कहती हैं कि एक लड़की के रूप में लगभग दो सौ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद मैं अपने परिवार में पैदा हुई थी | मेरे जन्म लेने पर मुझे बहुत लाड-प्यार मिला और मुझे वो सब नहीं सहन करना पड़ा, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है | मेरे बाबा फ़ारसी और उर्दू के जानकार थे | वे अंग्रेजी भी पढ़े थे, पर घर में हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था | लेकिन जब मेरी माताजी जबलपुर से आईं, तब वे अपने साथ हिन्दी लेकर आईं | उन्होंने ही मुझे सबसे पहले 'पंचतंत्र' पढ़ना सिखाया |
लेखिका आगे कहती हैं कि मेरे बाबा मुझे 'विदुषी' बनाना चाहते थे | मुझे उर्दू-फ़ारसी सीखने में कोई अभिरूचि नहीं थी | माँ को गीता में विशेष रूचि थी, जब वो पूजा-पाठ करती थी तो मैं भी उनके साथ बैठ कर सुनती थी | बाद में मैं क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में कक्षा पाँचवी में भर्ती हो गई | यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था | हिन्दू लड़कियों के साथ-साथ ईसाई लड़कियाँ भी पढ़ती थीं | लेखिका को वहाँ छात्रावास में पहली दोस्त के रूप 'सुभद्रा कुमारी चौहान' मिलीं | लेखिका से सुभद्रा कुमारी चौहान दो साल सीनियर थीं और कविता लिखा करती थीं | लेखिका भी बचपन से तुक मिलाया करती थीं |
लेखिका कहती हैं कि मेरी माँ लिखती और गाती भी थीं | विशेष रूप से मीरा के पद गाना पसंद करती थीं | माँ को सुन-सुनकर मैंने भी ब्रजभाषा में लिखना आरम्भ किया | उस समय सुभद्रा कुमारी जी खड़ी बोली में लिखती थीं और प्रतिष्ठित भी थीं | मैं उनसे छिपकर कविता लिखा करती थी | एकदिन उन्होंने मुझसे कहा --- " महादेवी, तुम कविता लिखती हो ?" तो मैंने 'न' में जवाब दिया | अत: वो जान गई कि मैं कविता लिखती हूँ, तो मैं सहज ही स्वीकार कर ली | तत्पश्चात्, हमारी मित्रता हो गई |
उन दिनों "स्त्री दर्पण" नामक एक पत्रिका निकलती थी | उसमें लेखिका और सुभद्रा जी दोनों अपनी-अपनी
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
कविताएँ भेजा करती थीं और वो कविताएँ छप भी जाया करती थीं | दोनों कवि सम्मेलनों में भी जाने लगीं | लेखिका अधिकतर प्रथम पुरस्कार ही हासिल करती थीं | लेखिका एक घटना को याद करते हुए कहती हैं कि एक कविता पर मुझे चाँदी का एक कटोरा मिला था | कटोरा बहुत सुन्दर और नक्काशीदार था | उस दिन सुभद्रा नहीं गई थी | मैंने उनसे आकर कहा --- " देखो, मुझे यह मिला |" तभी सुभद्रा ने कहा --- " तब तो तुम मुझे इस कटोरे में एकदिन खीर बनाकर खिलाओ |" सुभद्रा जी का उस कटोरे में खीर खाने का सपना तो नहीं पूरा हुआ, परन्तु लेखिका और महात्मा गाँधी के एक मुलाकात के दौरान वह कटोरा महात्मा गाँधी के हाथों चला गया | जब लेखिका ने यह घटना सुभद्रा जी से साझा की तो उसने कहा --- " देखो भाई, खीर तो तुमको बनानी होगी | अब तुम चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ, चाहे फूल के कटोरे में...|"
लेखिका कहती हैं कि बाद में सुभद्रा कुमारी चौहान छात्रावास छोड़कर चली गईं | उनकी जगह एक मराठी लड़की 'ज़ेबुन्निसा' हमारे कमरे में रहने आई | ज़ेबुन्निसा मेरा बहुत सारा काम कर देती थी, जिसकी वजह से मुझे कविता लिखने का समय मिल जाता था | लेखिका अपना तात्कालीन अनुभव बताते हुए कहती हैं कि उस समय हमारे मध्य साम्प्रदायिकता नहीं थी | हम अलग-अलग प्रांत से संबंध रखने के कारण स्वतंत्र रूप से अपनी बोलियाँ या भाषा में व्यवहार किया करते थे | हम साथ मिलकर हिन्दी और उर्दू भी पढ़ते थे, हम एक मेस में खाना खाते थे और बिना किसी विवाद के एक प्रार्थना में खड़े होते थे |
लेखिका बचपन में जहाँ रहती थी, वहाँ उनके घर के पड़ोस में रहने वाले नवाब साहब के परिवार से उनके बहुत अच्छे संबंध थे | दोनों परिवार एक-दूसरे से घुल-मिल गए थे | एक-दूसरे का जन्मदिन भी मिलकर मनाया करते थे | एक-दूसरे के त्यौहारों में शामिल हुआ करते थे | नवाब साहब के द्वारा ही उनके छोटे भाई का नाम 'मनमोहन' रखा गया था, जो आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी और गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने |
लेखिका आज की स्थिति पर अफसोस जताती हुई कहती हैं कि आज वह आपसी मोहब्बत,एकता और भाईचारा का सपना कहीं खो गया है | यदि वह सपना सच हो जाता, तो भारत की कथा कुछ और ही होती.
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