Saturday, November 28, 2020

Miyan Naseeruddin MCQ मियाँ नसीरूद्दीन MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 2

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मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ  मियाँ नसीरुद्दीन हम -हशमत  नामक संग्रह से लिया गया है , जिसकी लेखिका कृष्णा सोबती हैं। इसमें खानदानी नानबाई मियां नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों, और स्वभाव के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि किस तरह " मियाँ नसीरुद्दीन " को छप्पन तरह के रोटी पकाने की कला में महारत हासिल थी। वो अपने पेशे को कला का दर्ज़ा देते हैं। 

एक दोपहर जब लेखिका घूमती हुई  जामा मस्जिद के निकट मोहल्ले में एक अंधेरी दुकान के पास आती हैं, तो पता चलता है कि वह दुकान खानदानी नानबाई,  मियाँ नसीरुद्दीन कि दुकान है। उन्हें यह भी मालूम हुआ कि मियाँ छप्पन किस्म की रोटियां बनाने के लिए मशहूर हैं।

आगे लेखिका बताती हैं कि जैसे वे अंदर झांककर देखतीे हैं, तो पाते हैं कि मियाँ चारपाई पर बैठकर बीड़ी के मजे ले रहे हैं। उनके चेहरे से एक मंझे हुए कारीगर के तेवर साफ नजर आ रहे थे।

आरंभ में तो मियाँ उन्हें ग्राहक समझ लेते हैं, पर उनके सवाल पूछने पर उन्हें ज्ञात हो जाता है कि वो पत्रकार हैं। मियाँ साहब उनके सवालों का जवाब देने को तैयार हो जाते हैं, तो लेखिका उनसे पूछती हैं - आपने इतने किस्म की रोटियां बनाने की कला कहां से हासिल की। जवाब में मियाँ बताते हैं - और कहां से सीखेंगे! यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा। जो भी इल्म सीखी अपने पिता से सीखी, ये सारे हमारे बाप - दादाओं का हुनर है।


लेखिका के सवाल पर मियाँ अपने बाप और दादा का नाम बताते हैं , जिससे वे मशहूर हुआ करते थे। आगे लेखिका पूछती हैं - आपको इन दोनों में से किसी की नसीहत याद है तो बताइए। मियाँ साहब समझाते - समझाते उनसे ही सवाल करने लग जाया करते। पर उनके सवाल तो लेखिका के समझ से परे ही होतेे। फिर मियाँ साहब उन्हें अपने लफ़्ज़ों में उदाहरण देते हुए समझाने लगते।
लेखिका फिर सवाल करती हैं - यहां और भी नानबाई हैं? तो मियाँ जवाब देते हैं कि बहुत हैं, पर कोई खानदानी नहीं है। मियाँ अपने पूर्वजों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनके पूर्वजों से एक बार बादशाह ने फ़रमाया था - मियाँ नानबाई कुछ ऐसी चीज खिलाओ, जो ना आग में पके और ना ही पानी में! लेखिका उत्सुक होकर पूछती हैं - क्या बनी उनसे ऐसी चीज? मियाँ बोलते हैं - क्यों ना बनती साहिब! बनी भी, बादशाह सलामत ने खूब खाई और खूब सराही भी।

लेखिका उनसे पूछती हैं कि, किस बादशाह के यहां आपके पूर्वज काम करते थे, तो मियाँ गोलमोल जवाब दे देते। लेखिका उनसे उनके बच्चों के बारे में पूछना चाहती, पर मियाँ के चेहरे के भाव देखकर उन्होंने इस बात को ना छेड़ना ही उचित समझा। बातों बातों में यह मालूम हुआ कि मियाँ अपने शागिर्दों का बहुत सम्मान करते थे और उन्हें समय पर वेतन दिया करते थे।

मियाँ को अब इस मजमून में अब कोई दिलचस्पी बाकी ना रही। जब लेखिका पूछती हैं कि ज्यादातर इस भट्टी में कौन सी रोटी बनती है, तो मियाँ पीछा छुड़ाने को बोले - बाकरखानी - शीरमाल - ताफतान -  बेसनी - खमीरी - रूमाली - गाव - दीदा - गाजेबान - तुनकी। आगे मियाँ कहते हैं कि अब वे कद्रदान नहीं रहे जो पकाने - खाने की कद्र किया करते थे। लेखिका, मियाँ नसीरुद्दीन के रोटी बनाने की कला और अपना पेशे के प्रति समर्पण देखकर बहुत प्रभावित हुईं…|| 

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