Saturday, November 28, 2020

Doodh Ka Daam MCQ दूध का दाम MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 1

Doodh Ka Daam MCQ दूध का दाम MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 1 Doodh Ka Daam MCQ दूध का दाम MCQ Class 1 Hindi Aaroh Chapter 


Attempt the quiz here :
https://quizizz.com/join/quiz/5fbfa6a059051e001caf5695/start
https://quizizz.com/join/quiz/5fbfa8ddf5e8cf001ba2eb06/start


दूध का दाम कहानी का सारांश  


प्रस्तुत पाठ अथवा कहानी दूध का दाम लेखक प्रेमचंद जी के द्वारा लिखित है | इस कथा के माध्यम से प्रेमचंद ने गांव में बच्चों के जन्म के समय होने वाली समस्याओं के बारे में बताया है। लेखक कहते हैं कि बड़े शहरों में दाई, नर्स, स्री डॉक्टर आसानी से मिल जाते हैं पर‌‌ गांव में ज‌च्चेखानों पर आज भी भंगिनो (मेहतर की पत्नी) का ही  सर्वस्व  ‌है। और उन्हें आने वाले भविष्य में इसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की सम्भावना भी नजर नहीं आती। बाबू महेशनाथ अपने गांव के एक पढ़े‌- लिखे शिक्षीत इंसान थे और वे ज‌च्चेखानों में सुधार को‌ जरूरी ‌समझते थे। पर इस रास्ते में ‌बहुत सी बाधाएं ‌थी, जिस पर वे कैसे विजय प्राप्त करते हैं, लेखक ने बताया है।

कोई भी नर्स गांव जाने को तैयार नहीं होती थी , अगर बहुत मिन्नतें करने के बाद तैयार होती भी तो इतना अधिक फीस मांग ‌लेती की बाबू साहब को सिर झुकाकर आना पड़ता। लेडी डॉक्टर के पास जाने की उनमें शक्ति न थी, उनकी फीस ही इतनी अधिक थी कि उनको उसे पूरा करने के लिए अपनी आधी जायदाद ही बेचनी पड़ जाती। तीन लड़कियों के बाद जब चौथा लड़का हुआ तो वहां गुदड़ और गुदड़ की बहू ही थी। बच्चे अक्सर रात को ही पैदा हुआ करते हैं। एक दिन आधी रात में चपरासी ने गुर्जर के घर पर ऐसी आवाज लगाई के आस पड़ोस के सारे लोग जाग गए। आखि़र कार वह एक लड़की तो था नहीं कि वह धीमी आवाज में बुलाता ।


इस शुभ अवसर के लिए महीनों पहले से तैयारियां की जा रही थी उन्हें इस बात का भय सता रहा था कि कहीं फिर से इस बार बेटी ना हो जाए। इस बात को लेकर कई बार पति पत्नी में झगड़े भी हुए, गुदड़ के पत्नी हमेशा कहा करती थी, अगर बेटा ना हुआ तो मैं तुम्हें अपनी शक्ल ना दिखाऊंगी और गुदड़ कहा कहता था कि देख लेना बेटी ही होगी, अगर बेटा हुआ तो अपने मूंछ मूड़ा लूंगा। गुदड़ समझता था कि इस तरह वह अपनी पत्नी के मन में पुत्र कामना को बढ़ा रहा है। 

भूंगी कहती है- मूंछे मूडा़ लो,मैं कहती ‌थी ना‌, लड़का ही होगा। मैं खुद ही तेरी मूछ मूड़ूंगी, थोड़ा सा भी नहीं छोडूंगी। 
गूदड़ कहता है- अच्छा बाबा मूड़ लेना, भोंगी ने तीन महीने के बालक को गूदड़ को दिया और सिपाही के साथ जाने लगी ।
गूदड़ ने पुकारा- कहां भागी चली! मुझे भी बधाई देने जाना है, इसे कौन संभालेगा?
भोगी कहती है इसे वहीं जमीन पर सुला देना मैं आकर इसे दूध पिला दूंगी। 

लेखक कहते हैं कि महेश नाथ के यहां‌ भूंगी की बहुत ख़ातिरदारीयां होने लगी। सुबह को‌‌ पिस्ता बदाम, दोपहर में हलवा पूरी और रात को भी खाने को मिलता था। ढोंगी अपने बच्चों को सुबह से रात तक में एक दो बार से ज्यादा बार दूध नहीं पिला सकती थी, उनके लिए वह बाहर का दुध मंगवाती थी। भूंगी का दुध  बाबू साहब का भाग्यवान पुत्र पीता था। मालकिन मोटी ताजी स्त्री थी, मगर इस बार दुध हुआ ही नहीं था। तीनों लड़कियों के समय जरूरत से ज्यादा दूध हुआ था, जिसे लड़कियों को बदहजमी भी हो जाती थी पर इस बार एक बूंद भी नहीं हुई। भोंगी दाई भी थी, और वह दूध भी पिलाती थी ।

मालकिन कहती थी भूंगी हमारे बच्चों को पाल दे फिर उसके बाद बैठकर तु खाती रहना। पांच बीघा जमीन तेरे नाम करवा दूंगी तेरे नाती पोते भी खाते रहेंगे।भूंगी मुंडन के समय चूड़े लेना चाहती है। मालकिन ने कहा अच्छा बाबा सोने के ले‌‌ लेना।घर में मालकिन के बाद भूंगी की ही चलती थी  घर में सभी उसका रोब मानते थे कभी-कभी तो बहु जी भी उनसे ही दब जाती थी।

भूंगी का शासनकाल साल भर से ज्यादा नहीं चल पाया। शास्त्रियों ने बालक को भंगिन का दूध पिलाने पर आपत्ति जताई और प्रायश्चित का प्रस्ताव भी कर दिया। दूध भी छुड़ा दिया गया लेकिन प्रायश्चित की बात को गंभीरता से नहीं लिया गया।  महेश नाथ ने फटकार लगाते हुए कहा प्रायश्चित की क्या बात कही शास्त्री जी ने कल तक उसी भंगिन  का खून पीकर बड़ा और आज उसी में छूत घुस गई, क्या यही आपका धर्म है‌!

शास्त्री जी फटकार कर बोले‌- यह सत्य है कल तक बच्चा जैसे भी पला बढ़ा, कल की बात कल की थी और आज की बात अलग है। जगन्नाथपुरी में छूत-अछूत सभी एक ही थाली में खाते हैं पर यहां तो ऐसा नहीं हो सकता ना। बीमारी में तो हम भी कपड़े पहनकर ही खाना खाते हैं खिचड़ी भी खा लेते हैं। बाबूजी, लेकिन अच्छे हो जाने के बाद तो नियम का पालन करना ही पड़ता है। तो इसका अर्थ यह है कि धर्म बदलता रहता है- कभी कुछ, कभी कुछ?

शास्त्री कहते हैं हां!  राजा का धर्म अलग और प्रजा का धर्म अलग। अमीरों का धर्म अलग और गरीबों का धर्म अलग। राजा- महाराजा जो चाहे खाएं, जिसके साथ चाहे शादी ब्याह करें, उनके लिए कोई बंधन नहीं है।भूंगी को गद्दी से उतरना पड़ा। हां जरूरत से ज्यादा दान- दक्षिणा‌ मिली, इतनी कि अकेले ना ले जा सके। उसे सोने के कड़े भी मिले एक की जगह दो सुंदर साड़ियां मिली। 

लेखक कहते हैं कि इसी साल प्लेग  का आगमन भी  हुआ और  गूदड़  पहले ही चपेट में आ गया। भूंगी  अकेली हो गई पर किसी तरह घर गृहस्थी चलती रही। एक दिन जब भूंगी परनाला साफ कर रही थी तो उसे एक सांप ने काट लिया । सांप को तो मार डाला गया लेकिन भूंगी को ना बचा सके। भूंगी का बेटा मंगल अब अनाथ था। वह दिन भर महेश बाबू के घर के आस-पास ही घूमा करता । जूठन इतना बचता था कि खाने की कोई कमी नहीं थी। उसे उस वक्त बुरा लगता था, जब‌ उसे मिट्टी के बर्तन में ऊपर से खाना दिया जाता था और सभी अच्छे-अच्छे बर्तनों में खाते। उसे इस भेदभाव का ज्ञान तो‌ ना था मगर गांव के बच्चे उसे चिढा़-चिढा़- कर उसका अपमान करते।  उसके साथ कोई खेलता भी नहीं था । मकान के सामने एक नीम का पेड़ था उसी पेड़ के नीचे मंगल रहता था एक फटा सा टाट, दो मिट्टी के बर्तन और एक धोती, जो सुरेश बाबू की उतारी हुई थी। मंगल के साथ गांव का एक कुत्ता भी रहता था | मंगल और टाॅ‌मी में गहरी दोस्ती थी। वह प्रतिदिन एक न एक बार अपने पुराने घर को देखने जाया करता था, वह उसी टूट चुके छत टूटे दीवारों मैं बैठकर जीवन के बीते और आने वाले सपने देखा करता।

एक दिन कई लड़के खेल रहे थे, मंगल भी पहुंच गया सुरेश को उस पर दया आई या खेलने वालों की जोड़ी पूरी ना हुई , उसे भी खेल में शामिल कर लिया गया।सुरेश ने कहा चल तू घोड़ा बनेगा और हम तुम्हारी सवारी करेंगे।
मंगल ने शंका से पूछा- मैं हमेशा घोड़ा ही बना रहूंगा या सवारी भी करूंगा। सुरेश ने कुछ पल सोच कर कहा- तुझे अपनी पीठ पर कौन बैठेगा आखिर तू एक भंगी है कि नहीं?मंगल ने कहा- मैं कब कहता हूं कि मैं भंगी नहीं हूं? लेकिन तुम्हें मेरी मां ने अपना दूध पिला कर पाला है। जब तक मुझे भी सवारी करने नहीं मिलेगी, तब तक मैं भी घोड़ा नहीं बनूंगा।

सुरेश ने डाट कर कहा- तुझे घोड़ा बनना पड़ेगा और उसे पकड़ने के लिए दौड़ा। मंगल भागा, सुरेश ने दौड़ाया पर दौड़ने में सुरेश की सांस फूलने लगी।
आखिरकार सुरेश ने रुक कर कहा- घोड़ा बन जाओ मंगल, वरना किसी दिन पूरी तरह पीटूंगा। 
मंगल ने कहा- तुम्हें भी घोड़ा बनना पड़ेगा‌
अच्छा हम भी बन जाएंगे
मोहन ने दिमाग लगाते हुए कहा- तुम पीछे से निकल जाओगे। पहले तुम घोड़ा बन जाओ, पहले मैं सवारी कर लेता हूं उसके बाद मैं घोड़ा बन जाऊंगा । 
सुरेश और उसके दोस्तों ने मंगल को घेर लिया और उसे घोड़ा बनाकर उस पर सवारी करने लगे। कुछ देर के बाद सुरेश मंगल के पीठ से गिर गया और रोने लगा।
मां ने पूछा किसने मारा है? 
सुरेश ने रो कर कहा, मंगल ने छू दिया।
सुरेश की मां ने मंगल को बुलाकर कहा- तुम्हें याद है कि नहीं, मैंने तुम्हें इसे छूने से मना किया था।
मंगल ने दबी आवाज से कहा - मुझे याद है।
जितनी हो सकती थी उसने उसे गालियां दी और हुकुम दी कि अभी यहां से निकल जा।
मंगल ने अपना टाट, धोती उठाई और अपने पुराने खंडहर की ओर चल दिया।
उसने टॉमी से पूछा अब क्या खाओगे टॉमी?
टॉमी ने कु-कु करके शायद कहा- ऐसे अपमान तो जिंदगी भर सहना है इतने में ही हार मान जाओगे तो कैसे चलेगा!

मंगल और टॉमी अंधेरे में मालिक के घर के बाहर छुप कर खड़े हो गए और सोचा अगर कोई हमें पुकारेगा तो हम चले जाएंगे, पर उसे किसी ने आवाज नहीं दी। कुछ देर तक वह निराश  वहां खड़ा रहा और जैसे ही नौकर पत्तल में थाली का झूठा ले जाता हुआ नजर आया, मंगल अंधेरे से निकलकर प्रकाश में चला आया।

नौकर ने उसे देखकर कहा- ले खा ले।
मंगल ने उसकी और कृतज्ञता भरी नजरों से देखा। 
मंगल टॉमी से कहता है- लोग कहते हैं दूध का दाम कोई नहीं चुका सकता और मुझे दूध का ये दाम मिल रहा है। 
टॉमी ने उसकी बातों पर दुम हिला दी  

Amazing Quotes Stories Watch awesome videos

No comments:

Post a Comment

MCQ Formal Letter Letter to Editor Class 10th 11th 12th Term-1 || Formal Letter format

MCQ Formal Letter Letter to Editor Class 10th 11th 12th Term-1 || Formal  Letter format  1] A Formal Letter Should Be _________ To Have The ...