Friday, November 27, 2020

Premchand Ke Phate Joote MCQ प्रेमचन्द के फटे जूते MCQ Class 11 Hindi Kshitij Chapter 6

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प्रेमचंद के फटे जूते का सारांश  
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ या निबंध लेखक 'हरिशंकर परसाई' जी के द्वारा लिखा गया है | इस निबंध में हरिशंकर परसाई जी के द्वारा प्रेमचंद के व्यक्तित्व का सादापन और एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की आडम्बरयुक्त प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया गया है | प्रेमचंद की एक तस्वीर देखकर, इस निबंध के माध्यम से लेखक कह रहे हैं कि प्रेमचंद का एक छायाचित्र मेरे पास है, जिसमें वो अपनी पत्नी के साथ दिखाई दे रहे हैं | सिर पर टोपी है, तन पर कुर्ता और धोती है | कनपटी चिपकी हुई दिखाई दे रही है, गाल धंस गए हैं और हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछ के कारण चेहरा भरा-भरा दिखाई दे रहा है | 

आगे लेखक आश्चर्य से कहते हैं कि फोटो खिंचाने की यदि यह पहनावा है, तो न जाने पहनने की कैसी होगी ? तत्पश्चात्, लेखक अनुमानतः कहते हैं कि इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी, इसमें तो अलग-अलग कपड़े बदलने का कोई गुण ही नहीं है | यह जैसा है, वैसा ही फोटो में भी आ जाता है | 

प्रेमचंद की फोटो की ओर देखते हुए जब लेखक की दृष्टि उनके चेहरे पर पड़ी तो वे कहते हैं कि तुम्हारा जूता
फट गया है और अँगुलियाँ बाहर की ओर स्पष्ट दिख रही हैं | क्या तुम्हें थोड़ा भी इसका एहसास नहीं ? क्या तुम्हें जरा भी संकोच नहीं ? क्या तुम इतना भी नहीं समझते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली को ढका जा सकता है |किन्तु, फिर भी तुम्हारा चेहरा विश्वास से भरा है | आगे लेखक कहते हैं कि लगता है फोटोग्राफर ने जब 'रेडी प्लीज़' कहा होगा, तब तुमने परम्परा के अनुसार मुस्कुराने की कोशिश की होगी | दर्द के गहरे कुएँ के तल में पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होगे, तभी बीच में ही फोटोग्राफर ने तुम्हारा फोटो खींचकर 'थैंक्यू' कह दिया होगा | पर सच कहूँ, तो यह मुस्कान नहीं, इसमें उपहास है, व्यंग्य है !

तत्पश्चात्, प्रेमचंद के फोटो को संबोधित करते हुए लेखक कहते हैं कि शायद तुम्हें फोटो का महत्व ही नहीं पता | यदि पता होता, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते उधार माँग लेते | लोग तो फोटो खिंचाने के लिए बीवी तक उधार माँग लेते हैं और तुम जूते भी नहीं माँग सके | तुम तो महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग-प्रवर्तक और न जाने क्या-क्या कहलाते थे, लेकिन फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ दिखाई दे रहा है | 

तत्पश्चात्, लेखक स्वयं के बारे में भी बात करने लगते हैं कि मेरा जूता भी बहुत अच्छा नहीं है, बस ऊपर से अच्छा दिखता है | यों तो अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट सा गया है | मेरा अँगूठा कभी ज़मीन से घिसकर लहुलूहान भी हो जाता है | मेरा पूरा पंजा छिल जाएगा, पर अंगुली बाहर नहीं दिखेगी | लेखक आगे भावात्मक रूप में कहते हैं कि सच तो यह है कि तुम्हारी अँगुली दिखती जरूर है, पर पाँव सुरक्षित है | मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है | तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते और हम हैं कि पर्दे पर कुर्बान हुए जा रहे हैं | आगे लेखक कहते हैं कि क्या तुम बहुत चक्कर काटते रहे ? इसलिए तुम्हारा जूता फट गया | क्या तुम बनिए के तगादे से बचने के प्रयास में मीलों चक्कर लगाकर घर लौटते रहे ? तत्पश्चात्, लेखक एक दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था | उसे बहुत अफ़सोस हुआ, तो उसने कहा --- " आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम...|" 

प्रेमचंद को संबोधित करते हुए लेखक कहते हैं कि लगता है तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो | तुम उसे बचाकर, उसके बगल से निकलने का प्रयास भी तो कर सकते थे | सभी नदियाँ पहाड़ों को नहीं काटती, कोई रास्ता बदल लेती हैं या घूमकर निकल जाती हैं | मैं अच्छे से समझता हूँ तुम्हारा ये व्यंग्य मुस्कान | तुम हम पर हँस रहे हो कि हम अँगुली छिपाकर और तलवा घिसाकर चल रहे हैं | मानो निश्चित ही तुम ऐसा कहकर हमें चिढ़ा रहे हो कि हमने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली भले ही बाहर निकल आई, पर पाँव सुरक्षित है | लेकिन तुम अँगुली को ढाँकने के चक्कर में अपने तलुवे का नुकसान कर रहे हो, उसे लहुलूहान कर रहे हो | तुम चलोगे कैसे ? मैं अच्छे से समझता हूँ तुम्हारा ये व्यंग्य मुस्कान...|| 
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