Sakhiyan Evam Sabad MCQ साखियाँ एवं सबद MCQ Class 9 Hindi Kshitij Chapter 9
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साखियाँ एवं सबद पाठ का सारांश
साखियाँ एवं सबद पाठ में कवि 'कबीर' की 'साखियाँ एंव सबद' दोनों को संकलित किया गया है | कवि कबीर का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्ति पाता है | प्रस्तुत पाठ में कबीर, जहाँ अपनी साखियों के माध्यम से एक संत की विशेषता, प्रेम का महत्व, ज्ञान की शक्ति, आडम्बरयुक्त समाज का विरोध आदि भावों को उल्लेखित किए हैं | वहीं अपने पहले सबद के माध्यम से ये संकेत दे रहे हैं कि मनुष्य के भीतर ही ईश्वर का वास है, तो दूसरे सबद के माध्यम से ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाल रहे हैं | कबीर की यह रचना जनमानस की सादा-सरल भाषा में लिपिबद्ध है, जो हमेशा से कबीर की रचनाओं की खास विशेषता रही है |
(1)- मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं |
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार हंस मानसरोवर के भरे हुए जल में क्रीड़ा करते हुए मोती चुगते हैं तथा उसे छोड़कर कहीं जाना पसंद नहीं करते | ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी जीवन के मायाजाल अर्थात् धोखे के जाल में ऐसा फंस गया है कि उसमें सत्य को पहचानने की शक्ति ही न रही |
(2)- प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ |
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूंढ़ना बहुत कठिन है | कवि ईश्वर को हर जगह तलाशते हैं, परन्तु सफलता हाथ नहीं लगी | कवि का मानना है कि जब प्रेमी रूपी ईश्वर हमें मिल जाएगा, तब कष्ट रूपी सारा विष, सुख रूपी अमृत में बदल जाएगा |
(3)- हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि |
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि साधना रूपी एक आसन बिछाकर मनुष्य को सदा अपने ज्ञान को हाथी के समान बड़ा और विशालकाय बनाने का प्रयत्न करना चाहिए अर्थात् ज्ञान अर्जन पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए |
कवि संसार की तुलना कुत्तों से करते हुए कहते हैं कि ये तुम पर भौंकते ही रहेंगे अर्थात् तुम्हारी निंदा करते ही रहेंगे | अत: इन पर ध्यान देना मूर्खता है | वे एकदिन स्वयं चुप हो जाएँगे |
(4)- पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान |
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि सही मानो में सच्चा मनुष्य या संत वही है, जो बिना किसी भेदभाव के अर्थात् निष्पक्ष रूप से ईश्वर की भक्ति-भजन में लीन है | वरना, लोग ईश्वर को भूलाकर पक्ष-विपक्ष की भूमिका निभाते हुए आपस में लड़ रहे हैं | ईर्ष्या की भावना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई है |
(5)- हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई |
कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हिन्दू राम नाम का जाप करते हैं और मुसलमान खुदा का नाम लेते हैं अर्थात् ये दोनों एक-दूसरे से भेदभाव रखते हैं | जबकि कवि के अनुसार, वास्तव में जीवित वही व्यक्ति है, जो इन दोनों तरह के व्यक्तियों से खुद को पृथक रखे |
(6)- काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम |
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि तुम चाहे काबा जाओ या फिर काशी जाओ | तुम राम की उपासना करो या फिर रहीम की | ईश्वर तो एक ही है | जिस तरह मोटे आटे को महीन पीसने से मैदा बन जाता है, पर दोनों एक ही वस्तु है | ठीक उसी प्रकार ईश्वर को चाहे जिस किसी भी रूप में मानो, वह तो एक ही है |
(7)- ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ |
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई |
भावार्थ - उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की 'साखियाँ' से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि सिर्फ ऊँचे कुल में जन्म लेने से कुछ नहीं होता | मनुष्य अपने कुल से नहीं, बल्कि अपने कर्मों की वजह से जाना जाता है | यदि मनुष्य का कर्म बुरा है, तो वह बुरा ही कहलाएगा | जिस प्रकार सोने के कलश में यदि शराब पड़ा हो, तो वह निंदा के योग्य ही है |
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