Sunday, November 29, 2020

Vidai Sambhashan MCQ विदाई सम्भाषण MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 4

Vidai Sambhashan MCQ विदाई सम्भाषण MCQ Class 11 Hindi Aaroh Chapter 4

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विदाई संभाषण पाठ का सारांश 






प्रस्तुत पाठ विदाई संभाषण लेखक बालमुकुंद गुप्त की सर्वाधिक चर्चित व्यंग्य कृति शिवशंभु के चिट्ठे का एक अंश है। यह पाठ भारत के वायसराय लॉर्ड कर्ज़न के समय भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। देखा जाए तो लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत से कार्य हुए, लेकिन इन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना और देश के संसाधनों का अंग्रेज़ों के हित में उपयोग करना था। हर स्तर पर कर्ज़न ने अंग्रेज़ों का वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की। उसने प्रेस तक की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया था। बंगाल विभाजन भी, उसी की जिद का परिणाम था।

पाठ में लेखक, लॉर्ड कर्ज़न के शासनकाल के अंत होने पर अत्यंत खेद प्रकट करते हैं। किसी ने नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी कर्ज़न के शासनकाल का अंत हो जाएगा। लेखक के अनुसार किसी से बिछड़ने का समय बहुत ही करुणोत्पादक होता है। लॉर्ड कर्ज़न के दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार से प्रसन्न ना थे। वे चाहते थे कि कर्ज़न वापस ना आयें। परंतु ऐसा ना हुआ, कर्ज़न दूसरी बार वायसराय बनकर वापस आए और भारत की सुख समृद्धि वापस लाने का वादा किया तो सबको उसका नाटक समझ आ गया। उससे देशवासी दुखी हो गए, देशवासी चाहते थे कि कर्ज़न जल्द से जल्द यहां चले गए। पर आज कर्ज़न के जाने से सभी दुखी हैं, इससे पता चलता है कि किसी से भी बिछड़ने का समय कितना दुखदाई होता है, कितना पवित्र, कितना निर्मल और कितना कोमल होता है। जिस देश में पशु - पछियां एक दूसरे से बिछड़ कर दुखी होती है उस देश में यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं मनुष्यों की क्या दशा हो सकती है।


आगे लेखक बताते हैं कि, इस देश में जितने भी शासक आए एक ना एक दिन उनको जाना ही पड़ा। इससे कर्ज़न का देश से जाना भी परंपरा ही थी। कर्ज़न ने बंबई में उतरकर कहा था कि यहां से जाते समय भारत को ऐसा कर जाऊंगा, की मेरे बाद आने वाले शासकों को कई वर्षों तक कुछ करना नहीं पड़ेगा। वे कई वर्षों तक चैन की नींद सोते रहेंगे। मगर बात उल्टी साबित हुई और कर्ज़न जाते - जाते इतनी अशांति फैला चुके थे कि आने वाले शासक कई वर्षों तक सो नहीं पाएंगे। कर्ज़न ने अपने आराम के लिए भारतवासियों को इतना परेशान किया है कि यहां के लोग कभी खुश ना हो सके, इसका लोगों के मन में अत्यंत दुख व्याप्त है।

आगे लेखक कहते है कि, इस  देश में कर्ज़न की जितनी शान थी जाते वक्त सब समाप्त हो गई। कर्ज़न की इस देश में इतनी शान थी कि, उनकी और उनकी पत्नी की कुर्सी सोने की बनी थी तथा उनके भाई और भाभी की कुर्सी चांदी की बनी थी। हर चीज में कर्ज़न को पहला और उनके भाई को दूसरा स्थान दिया गया। देश के रईसों ने सबसे पहले उन्हीं को सलाम किया उसके बाद बादशाह को। 

कर्ज़न धीर - गंभीर प्रसिद्ध थे। उन सभी धीरता गंभीरता का कर्ज़न ने बेकानुनी - कानून पास करा कर दिवाला निकाल दिया। इस देश में सभी राजा महाराजा उनके कहने पर एक बार में ही हाथ जोड़कर खड़े हो जाया करते थे। कर्ज़न के लिए राजाओं को हराना कोई बड़ी बात नहीं थी ना ही किसी छोटे इंसान को बड़ा पदाधिकारी बना देना। कर्ज़न के ही इशारे पर पूरे देश की शिक्षा- स्वाधीनता सभी समाप्त हो गई। आगे लेखक लॉर्ड कर्ज़न के बारे में कहते हैं कि, वे क्या करने आए थे और क्या कर के चले गए। क्या मनमाने तरीके से शासन चलाना और किसी प्रजा की ना सुनना ही अच्छा शासन है? ऐसा एक भी काम ना होगा जिसमें कर्ज़न ने अपनी जिद छोड़ कर किसी की सुनी होगी। ऐसा एक भी मौका ना होगा, जिसमें कर्जन ने प्रजा के अनुरोध, प्रार्थना सुनने के लिए उन्हें आसपास भी भटकने दिया हो। कर्ज़न के जिद ने प्रजा को तो पीड़ित किया ही उससे स्वयं कर्जन भी अछूते ना रहे। वे खुद उसी जिद के शिकार हुए। भारत की प्रजा दुख और कष्ट की अपेक्षा परिणाम पर अधिक ध्यान देती है। क्योंकि भारतवासी जानते हैं कि संसार में सभी चीजों का अंत है। दुख का समय भी एक न एक दिन तो निकल ही जाएगा इसी कारण वे सारे दुख सह कर जीते रहते हैं  

आगे लेखक कहते हैं कि, कर्ज़न यहां के शिक्षित लोगों को भरे आंख देख नहीं पाते थे। अनपढ़ - गूंगी प्रजा का नाम उनके मुंह से कभी कभी निकल भी जाया करता थी। लेखक कहते हैं कि, कर्जन से यह उम्मीद तक नहीं की जा सकती कि वे जाते-जाते अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हों और देशवासियों के लिए यह आशा करें कि उनके जाने के बाद यहां की सुख समृद्धि वापस आ जाए। देश अपने प्राचीन गौरव को वापस प्राप्त कर सके। उनका कहना है कि इतनी उदारता लॉर्ड कर्ज़न मैं कभी नहीं आ सकती.|| 

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