Thursday, November 19, 2020

Usha MCQ उषा MCQ Class 12 Hindi Aroh Chapter 6

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उषा शमशेर बहादुर सिंह की कविता उषा कविता की व्याख्या - 

१. प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे 
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)

व्याख्या - प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रातःकाल के सूर्योदय का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया है .कवि कहता है कि प्रातःकालीन आकाश नीले शंख जैसे प्रतीत हो रहा है .प्रातःकाल आकाश ग्रामीण चौके जैसे राख से लीपा हुआ प्रतीत होता है .लीपा हुआ चौका गीला लग रहा है ,जिससे वातावरण में नमी बनी हुई है .

२. बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से
कि धुल गयी हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

व्याख्या - सूर्योदय के साथ आकाश पहले काली सिल जैसे प्रतीत होती हैं लेकिन काली सिल को सूर्य के उदय के साथ ही लाल केसर से धो दिया गया है .अब आकाश में परिवर्तन हो गया है .आकाश सूर्योदय के पहले काली स्लेट लगता था ,लेकिन सूर्य के उदय के साथ किसी ने लाल खड़िया चाक ,आकाश में मल दिया है .अब आकाश लाल खड़िया चाक के समान लगता है .

३. नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।

और...
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

व्याख्या - कवि कहता है कि सूर्योदय के समय आकाश नीले रंग के समान हो जाता है .वह किसी नीले रंग के जलाशय के समान प्रतीत होता है और ऐसे जलाशय के समान प्रतीत होता है और ऐसे जलाशय में गौर रंग की सुंदरी की देह हिल रही हैं .इस प्रकार सूर्योदय के समय उषा का सौन्दर्य हमेशा बदलता रहता है .इस प्रकार पूर्ण सूर्योदय के समय उषा का जादू का प्रभाव कम हो जाता है .




उषा शमशेर बहादुर सिंह की कविता उषा कविता का भावार्थ उषा कविता का मूलभाव /केन्द्रीय भाव - 


उषा कविता शमशेर बहादुर सिंह जी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध कविता है .इस कविता में कवि ने बिम्ब ,नए प्रतिक ,नए उपमान कविता में प्रयोग किये हैं .यहाँ तक पुराने उपमानों में भी नए अर्थ की चमक भरने का प्रयास कवि ने किया है .अपना आस -पड़ोस  कविता का हिस्सा बनाया .इस प्रकार उषा कविता सूर्योदय के ठीक पहले के पल - पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द चित्र हैं .कवि ने प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने का प्रयास किया है .सूर्योदय के समय आकाश नीले रंग के शंख की तरह दिखाई पड़ता है .वह राख से लिपे हुए चौके की तरह लगता है ,जो नमी के कारण गीला हो गया है .कवि को सूर्योदय से पहले आकाश काले सिल की तरह लगता है ,जिस प्रकार सूर्योदय के कारण लाल केसर मल दिया गया है .आकाश भी नीले रंग के जलाशय से समान लगता है ,जिसमें गौर रंग की सुंदरी की देह झिलमिल कर रही हैं .अतः सूर्योदय के साथ उषा के जादू का प्रभाव समाप्त हो जाता है .कवि भोर के आसमान का मूकदर्शक नहीं है .वह भोर की आसमानी गति को धरती के जीवन भरे होलाहल से जोड़ने वाला स्रस्टा भी है .इसीलिए वह सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है जो गाँव की सुबह से जुड़ता है - वहां सिल है ,राख से लीपा हुआ चौका है और है स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ .यह एक ऐसे दिन की शुरुवात है ,जहाँ रंग हैं ,गति है और भविष्य की उजास है और है हर कालिमा को चीरकर आने का एहसास कराती उषा .
इस प्रकार कवि हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले दृश्यों उपमानों का प्रयोग करके जीवंत चित्र प्रस्तुत किया गया है और प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधा गया है .


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