Mere Sang Ki Auraten MCQ मेरे संग की औरतें MCQ Class 9 Hindi Kritika Chapter 2
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मेरे संग की औरतें पाठ का सारांश
मेरे संग की औरतें पाठ या कहानी मेरे संग की औरतें लेखिका मृदुला गर्ग जी के द्वारा लिखित है | इस कहानी को वर्णित करते हुए लेखिका कहती हैं कि उनकी एक नानी थी, जिन्हें वह कभी नहीं देखी थी | लेखिका की माँ का विवाह होने से पहले ही उनकी नानी की मृत्यु हो चुकी थी | लेखिका को अपनी नानी से कहानी सुनने का सौभाग्य नहीं मिल पाया था | परन्तु, वह नानी की कहानियों को जरूर सुनी थी, जिसका वास्तविक मर्म लेखिका को बाद में समझ में आया |
लेखिका अपनी नानी के बारे में बताते हुए कहती हैं कि उनकी नानी एक पारम्परिक, अनपढ़ और पर्दा करने
मेरे संग की औरतें
मेरे संग की औरतें
वाली महिला थीं, जिनके पति विवाह पश्चात् उन्हें छोड़कर वकालत (बैरिस्ट्री) पढ़ने विदेश चले गए थे | वहाँ से पढ़कर लौटने के बाद लेखिका के नाना पर विदेशी रहन-सहन का रंग दिखने लगा, पर लेखिका की नानी पर इसका कोई असर न हुआ था | आगे लेखिका कहती हैं कि जब कम उम्र में नानी ने स्वयं को मृत्यु के नजदीक पाया, तो 15 वर्षीय इकलौती पुत्री यानी लेखिका की माँ की शादी की चिंता ने उन्हें डरा दिया | तत्पश्चात्, इसी चिंता के कारण नानी पहले की अपेक्षा अधिक बोलने वाली बन गई | एकदिन नानी ने नाना से कहा कि वह उनके दोस्त स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से मिलने को इच्छुक हैं | नाना ने बिना किसी सवाल-जवाब के अपने दोस्त को लाकर नानी के समक्ष खड़ा कर दिया | नानी ने स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से कहा --- " आप मुझे वचन दीजिए कि मेरी लड़की के लिए वर आप तय करेंगे | मैं नहीं चाहती की मेरी बेटी का विवाह मेरे पति जैसे साहब से हो | आप खुद के जैसा आजादी का सिपाही ढूँढ़कर उसकी शादी करवा दीजिएगा...|"
आगे लेखिका कहती हैं कि नानी की मर्जी के अनुसार, मेरी माँ की शादी एक पढ़े-लिखे लड़के यानी मेरे पिता के साथ हो गई, जिन्हें बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहने के अपराध में आई.सी.एस. की परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था | लेखिका कहती हैं कि मेरी माँ, नानी और गाँधी जी की तरह ही सादा और उच्च विचारों वाला जीवन जीने के आदि हो गई थीं | नाना पक्के साहब माने जाते थे | वे सिर्फ नाम के हिन्दुस्तानी रह गए थे | बाकी चेहरे-मोहरे, रंग-ढंग, पढ़ाई-लिखाई, सब में अंग्रेज थे | लेखिका कहती हैं कि मजे की बात यह है कि गाँधी-नेहरू या मेरे पिताजी के घर वाले हों या फिर आजादी की जंग लड़ने वाले ही क्यूँ न हों, सभी अंग्रेजों के सबसे बड़े प्रशंसक थे |
लेखिका अपनी माँ के बारे में बताते हुए कहती हैं कि मैंने कभी उन्हें भारतीय माँ जैसा नहीं पाया था | न कभी वह हमें दुलार या लाड-प्यार दी, न कभी हमारे लिए खाना बनाया और न ही कभी अच्छी-पत्नी बहु होने की सीख दी | उनका अधिकतर समय पुस्तकें पढ़ने में गुजरता था | बाकी का समय साहित्य चर्चा और संगीत सुनने में बीतता था, जो ये काम वह बिस्तर पर लेटे-लेटे किया करती थी | घर में पिताजी माँ की भूमिका निभा लिया करते थे | लेखिका कहती हैं कि छोटे से घर में छह बच्चों के साथ, सास-ससुर आदि के रहते हर व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से रहकर अपना निजत्व बनाए रखने की छूट थी | इसी निजता का फायदा उठाकर हम तीन बहनें और एक छोटा भाई लेखन को समर्पित हो गए | लेखिका आगे कहती हैं कि जब मेरी माँ पहली बार गर्भ धारण की तो मेरी परदादी ने मंदिर में जाकर मन्नत माँगी कि मेरी बहु का पहला बच्चा लड़की के रूप में पैदा हो | वैसे घर में पहला बच्चा हर बहु का लड़का पैदा होता रहा था | लेकिन परदादी की मन्नत भी भगवान ने कुछ ऐसा सुना कि एक के बाद एक करके पाँच बेटियों ने जन्म ले लिया था |
लेखिका माँ जी और चोर के बारे में बताती हुई कहती हैं कि माँ जी के सामने अच्छे-बड़े नामी चोर भी फंस जाया करते थे | एक रोज तो एक नामी चोर माँ जी के कमरे में घूस आया | फिर क्या था, माँ जी ने उसकी ऐसी खबर ली कि बेचारा किसी लायक न रह गया | तब से वह चोर चोरी का धंधा छोड़कर खेती-किसानी में लग गया था | लेखिका ने बाद में जब उस चोर को देखा, तो वह भलामानुस सीधा-सादा बूढ़ा लगा | जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजादी के जश्न में डूबा था, तब लेखिका बीमार थी | वह उस समय 9 साल की बच्ची थी | लेखिका के बहुत रोने-धोने पर भी उसे इंडिया गेट जाकर जश्न में शामिल होने नहीं दिया गया | लेखिका और उसके पिताजी के अलावा घर के सभी लोग बाहर जा चुके थे | बाद में पिताजी ने उसे 'ब्रदर्स कारामजोव' नामक उपन्यास पकड़ा दिए थे | तत्पश्चात्, लेखिका उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो गई थी और पिताजी अपने कमरे में अपनी किताबें पढ़ने लगे थे |
लेखिका कहती हैं कि ये माँ जी की मन्नत का प्रभाव रहा होगा कि मैं और मेरी चारों बहनें लड़की होकर भी किसी हीन भावना का शिकार नहीं हुए | लेखिका कहती हैं कि पहली लड़की, जिसके लिए परदादी मन्नत माँगी थी, वह मैं नहीं, बल्कि मेरी बड़ी बहन मंजुल भगत थी, जिसका घर का नाम रानी था | दूसरे नम्बर पर मैं थी और मेरा घर का नाम उमा था | मुझसे छोटी बहन का नाम है गौरी है, जिसे बाहर में सब चित्रा के नाम से जानते हैं | वह नहीं लिखती | तत्पश्चात्, दो छोटी बहनों का नाम क्रमश: रेणु और अचला था | हम पाँच बहनों के बाद एक भाई हुआ, जिसका नाम राजीव था | लेखिका कहती हैं कि वक़्त की माँग को ध्यान में रखकर मेरी बहन अचला अंग्रेज़ी में लिखती हैं और भाई राजीव हमारी ही तरह हिन्दी में लिखता है |
आगे लेखिका कहती हैं कि विवाह पश्चात् मैं बिहार के एक छोटे कस्बे, जिसका नाम डालमिया नगर था, वहाँ रही | जहाँ की एक अजीब बात थी कि मर्द-औरतें, फिर चाहे वे पति-पत्नी ही क्यूँ न हों, पिक्चर देखने भी जाते तो अलग-अलग जगहों पर बैठते थे | मैं दिल्ली से कॉलेज की नौकरी छोड़कर वहाँ पहुँची थी और नाटकों में अभिनय करने की शौकीन रही थी | लेखिका कहती हैं कि मैंने वहाँ के चलन से हार नहीं मानी | लगभग साल भर के अंदर, उन्हीं शादीशुदा औरतों को पराए मर्दों के साथ नाटक करने के लिए मना लिया था | वहाँ अगले चार साल तक हमने मिलकर कई नाटकों में काम किए | अकाल राहत कोष के लिए भी उन्हीं के माध्यम से पैसा भी जुटाया | बाद में मैं कर्नाटक चली आई थी | तब तक मेरे दो बच्चे हो चुके थे, जो स्कूल जाने लायक की उम्र में पहुँच रहे थे | पर लेखिका कहती हैं कि वहाँ कोई बढ़िया गुणवत्तायुक्त स्कूल नहीं था | तत्पश्चात्, लेखिका ने स्वयं का एक प्राइमरी स्कूल खोला | वह कहती हैं कि मेरे बच्चे तथा दूसरे अफसरों या अधिकारियों के बच्चे उसी स्कूल में पढ़े थे | बाद में दूसरे अच्छे स्कूलों में प्रवेश भी पा गए |
ऐसे बहुत अवसर आए कि लेखिका अपने जुझारू और जिद्दीपन के नमूने पेश करती रही | परन्तु, वह सबसे ज्यादा ख्याति हासिल की अपने लेखन कला में...||
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