Mati Wali MCQ माटी वाली MCQ Class 9 Hindi Kritika Chapter 4
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माटी वाली कहानी का सारांश
माटी वाली पाठ या कहानी माटी वाली लेखक विद्यासागर नौटियाल जी के द्वारा लिखित है | यह कहानी टिहरी शहर की है | इस कहानी के माध्यम से लेखक ने टिहरी शहर के विस्थापनों के दर्द को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है | लेखक के अनुसार, माटी वाली बुढ़िया ने अपने सिर पर रखा माटी से भरा कनस्तर के बोझ को नीचे उतार कर रख दिया |शहर में हर कोई उस बुढ़िया को जानता था | टिहरी शहर का ऐसा कोई भी घर बाकी नहीं रहा होगा, जहाँ पर बुढ़िया लाल मिट्टी न देती हो | टिहरी वाले उस लाल मिट्टी का उपयोग चूल्हे-चौके की लिपाई और मकान के कमरे-दीवारों की लिपाई-पोताई के लिए भी किया करते थे | घर-घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक हरिजन बुढ़िया थी |
एक बार माटी वाली ने अपने कनस्तर को सिर पर से उतारकर रखा ही था कि सामने घर से नौ-दस साल की एक छोटी लड़की, जिसका नाम 'कामिनी' था, वह दौड़ती हुई वहाँ पहुँची और माटी वाली बुढ़िया से कहा --- " मेरी माँ ने कहा है, ज़रा हमारे यहाँ भी आ जाना |"
" अभी आती हूँ..." --- बुढ़िया ने जवाब दिया |
जब माटी वाली ने बच्ची के कहने पर उसके घर गई तो घर की मालकिन ने माटी वाली को अपने कनस्तर की
माटी वाली विद्यासागर नौटियाल
माटी वाली विद्यासागर नौटियाल
माटी कच्चे आँगन के एक कोने में उड़ेल देने को कहा | तत्पश्चात्, मालकिन ने उस बुढ़िया को खाने के लिए अपने रसोई से दो रोटी लाकर दी और वह पुनः रसोई चली गई | मालकिन के अंदर जाते ही बुढ़िया ने तुरंत अपने सिर पर से डिल्ले के कपड़े उतारा और उसे एक झटके में सीधा कर दिया | तत्पश्चात्, वह दो रोटी में से एक रोटी को उस डिल्ले के कपड़े में गाँठ बाँधकर रख ली | साथ ही अपना मुँह चलाकर खाने का दिखावा करने लगी | तभी घर की मालकिन पीतल के गिलास में चाय लेकर आई और बुढ़िया के पास ज़मीन पर रख दी | पीतल का गिलास देखकर उस बुढ़िया ने घर की मालकिन से कहा --- " तुमने अभी तक पीतल के गिलास सँभालकर रखा हुआ है | अब कहीं या किसी घर में ये गिलास देखने को नहीं मिलता है |
तभी घर की मालकिन ने जवाब में बोला --- " इस पीतल के खरीददार कई बार हमारे घर के चक्कर काटे, पर मैंने पुरखों की इस कीमती निशानी को कभी बिकने नहीं दिया | बाजार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगता है | अब काँसे के बर्तन भी गायब हो गए हैं सब घरों से...|" मालकिन आगे कहती हैं कि अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है | मैं तो ये सोचकर पागल हो जाती हूँ कि अब इस उम्र में टिहरी शहर को छोड़कर जाएँगे कहाँ !
इतने में उस माटी वाली औरत बोलती है --- " ठकुराइन जी, जो ज़मीन-जायदादों के मालिक हैं, वे तो कहीं न कहीं ठिकाने पर चले जाएँगे | पर मैं सोचती हूँ मेरा क्या होगा ! मेरी तरफ़ देखने वाला तो कोई भी नहीं |"
लेखक के अनुसार, तत्पश्चात्, माटी वाली ने चाय ख़त्म करके अपना सामान उठाई और वहाँ से निकलकर सामने के घर में चली गई | उस घर में भी उसे मिट्टी लाने के बदले दो रोटियाँ दे दी गई | उस रोटी को भी उसने बाँध लिया | दरअसल, वह रोटी बुढ़िया अपने बुड्ढे (पति) के लिए ले जा रही थी | आज वह घर पहुँचते ही तीन रोटियाँ बुड्ढे को दे देगी और बुड्ढा रोटियाँ देखकर खुश हो जाएगा |
माटी वाली का गाँव टिहरी शहर से इतना दूरी पर है कि उसे वहाँ तक पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लग जाता है | रोज सुबह वह अपने घर से निकल जाती है | पूरा दिन माटाखान में मिट्टी खोदने, फिर अलग-अलग स्थानों में फैले घरों तक उसे ढोने में बीत जाता है | उसके घर लौटते-लौटते अंधेरा छा जाता है | उसके पास अपना कोई खेत नहीं है | गाँव के एक ठाकुर की जमीन पर उसकी झोपड़ी खड़ी है | जमीन के बदले उस गरीब बुढ़िया को ठाकुर के घर बेगार करना पड़ता था | माटी वाली बुढ़िया मन ही मन बोली जा रही थी कि आज वह अपने बुड्ढे को केवल रोटियाँ नहीं देंगी | माटी बेचकर जो पैसा आया, उससे वह एक पाव प्याज भी खरीद ली, ताकि अपने पति को रोटी के साथ सब्जी भी परोसकर दे सके | मन में और भी कई तरह की बातें सोचती और हिसाब लगाती हुई वह अपने घर पहुँची गई | परन्तु, अफ़सोस की हर रोज की तरह आज बुड्ढा माटी वाली को देखकर चौंका नहीं और न ही किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दी | घबराई हुई माटी वाली ने जब अपने पति को छूकर देखा, तब पता चला कि वह सदा के लिए अपनी माटी को छोड़कर जा चुका था |
टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने जब माटी वाली बुढ़िया से उसके जमीन का पेपर माँगा तो वह नहीं दे पायी | क्योंकि उसके पास अपना कोई जमीन ही नहीं थी | वह माटी बेचकर किसी प्रकार गुजारा किया करती थी | तत्पश्चात्, टिहरी बाँध के दो सुरंगों को बंद कर दिया गया था | शहर में पानी भर जाने के कारण आपाधापी मचने लगी | शहरवासी अपने-अपने घरों को छोड़कर वहाँ से भागने लगे | माटी वाली अपने घर के बाहर चिंतित अवस्था में बैठी है | गाँव के सभी आवागमन करने वालों से वह एक ही बात कर रही थी --- " गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए...||"
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