Monday, November 9, 2020

Sanwle Sapno Ki Yaad MCQ साँवले सपनों की याद MCQ Class 9 Hindi Kshitij Chapter 4

MCQ Questions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद with Answers

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साँवले सपनों की याद जाबिर हुसैन

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साँवले सपनों की याद पाठ का सारांश 

साँवले सपनों की याद पाठ या संस्मरण के लेखक जाबिर हुसैन जी हैं | लेखक के द्वारा इसे जून 1987 में प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी 'सालिम अली' की मृत्यु के पश्चात् उनकी याद में डायरी शैली में लिखा गया है | सालिम अली की मौत से उत्पन्न हुआ दुख और अवसाद को लेखक ने 'साँवले सपनों की याद' के रूप में व्यक्त किया है | आगे लेखक मृत्यु को प्राप्त पक्षी विज्ञानी सालिम अली के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार होकर मौत की ख़ामोश वादी की ओर चले गए हैं | ये सम्भव ही नहीं कि उसे कोई रोक ले | भीड़-भाड़ वाले जीवन और तनाव के वातावरण से सालिम अली का यह अंतिम विदाई है | ऐसा लगता है मानो वे उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में शामिल हो रहे हैं, जो जीवन के अंतिम गीत गाने के पश्चात् मौत को गले लगा लिया हो | लेखक कहते हैं, सालिम अली ने कभी कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं | ये लोगों की भूल है | मानव प्रकृति की सारी चीजें प्रकृति की नज़र से नहीं, बल्कि आदमी की नज़र से देखने को उत्साहित रहता है | 

आगे लेखक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए भगवान कृष्ण के बारे में कहते हैं कि उसने कब वृन्दावन
साँवले सपनों की याद
साँवले सपनों की याद

में रासलीला रची थी और गोपियों को अपनी शरारतों का हिस्सा बनाया था | कब माखन चुराकर खाया था | वाटिका में कब घने पेड़ों की छाहों में आराम किया था | कब अपनी बंसी के जादू से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था | मुझे पता नहीं यह सब कब हुआ था, पर कोई आज भी वृन्दावन जाकर देखे तो वहाँ नदी का साँवला पानी उसे कृष्ण लीलाओं से परिचय करवा देगा | आज भी वहाँ कृष्ण की मनोहर बांसुरी का जादू फैला हुआ है | लेखक के अनुसार, सालिम अली लगभग सौ वर्ष के होने ही वाले थे कि उनकी मृत्यु कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के कारण हो गई थी | लेकिन मौत उनकी आँखों से वह रौशनी छीनने में असफल रही, जो पक्षियों की तलाश और उनके सुरक्षा के प्रति समर्पित थीं |


लेखक आगे अपनी बातों पर जोर देते हुए कहते हैं कि सालिम अली जैसा 'बर्ड वाचर' शायद कोई दूसरा हो | सालिम अली उन लोगों में थे, जो प्रकृति को भी अपने प्रभाव ले आते थे | वे प्रकृति की हंसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया का अटूट हिस्सा बन गए थे | इस दुनिया को बनाने में उन्हें बहुत मेहनत करना पड़ा था और इस प्रकृति की दुनिया को गढ़ने में उन्हें सबसे ज्यादा सहयोग मिला उनकी जीवनसाथी 'तहमीना' का | एक सहपाठी के रूप में भी तहमीना स्कूल के दिनों से ही सालिम अली का साथ निभाती आ रही थीं | 

लेखक के अनुसार, अपने अनेक और लम्बे रोमांचकारी अनुभवों के मालिक थे सालिम अली | एक बार जब वे केरल की 'साइलेंट वैली' को रेगिस्तानी हवाओं के झोंको से बचाने की विनती लेकर तात्कालीन प्रधानमंत्री 'चौधरी चरण सिंह' के पास मिलने गए, तब उन्होंने प्रधानमंत्री के समक्ष पर्यावरण के संभावित खतरों की जो तस्वीर रखा, उससे उनकी (चौधरी चरण सिंह) की आँखें भी नम हो गई थीं | आगे लेखक अफसोस जताते हुए कहते हैं कि आज सालिम अली जीवित नहीं हैं, गाँव की मिटटी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूँद का प्रभाव जानने वाले नेता चौधरी साहब भी नहीं हैं, अब कौन है, जो हिमालय और लद्दाख की बरफीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों के पक्ष में बोलेगा ?  

सालिम अली की आत्मकथा का नाम 'फॉल ऑफ ए स्पैरो' (Fall of a Sparrow) है | आत्मकथा का नाम आते ही, लेखक को एक घटना की याद आ जाती है, वे डी.एच. लॉरेंस के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी से अनुरोध किया गया कि वे अपने पति के बारे में कुछ लिखे | तब उन्होंने कहा की डी.एच. लॉरेंस के बारे में मुझसे ज्यादा मेरे छत पर बैठने वाली गोरैया जानती है | वह लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें बता सकती है | आगे लेखक कहते हैं कि मेरे लिए बहुत कठिन है उसके बारे में अपने अनुभवों को शब्दों में ढाल पाना | लेखक को भी यकीन है कि छत पर बैठने वाली गोरैया उनसे ज्यादा जानकारी रखती है | 

लेखक के अनुसार, सालिम अली सदैव जटिल प्राणियों के लिए एक पहली बने रहेंगे | वे प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय एक सागर बनकर उभरे थे | वे अपने जीवन में अपनी मेहनत से नीत नई ऊँचाईयों को निरन्तर छूते रहे | जो लोग उनके व्यक्तित्व से भलीभांति परिचित हैं, उन्हें ऐसा महसूस होता है कि सालिम अली आज भी पक्षियों की तलाश में निकले हैं, वे जल्द ही अपने गले में दूरबीन लटकाए लौट आएँगे | लेखक की आँखें नम हैं, वे सालिम अली के प्रति अपनी मोहब्बत को समर्पित करते हुए कहते हैं कि --- " सालिम अली, तुम लौटोगे न ! ..." || 

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