Thursday, November 5, 2020

Patjhar mein Tooti Pattiyan MCQ पतझर में टूटी पत्तियाँ MCQ Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16

CBSE Class 10 Hindi Sparsh book Chapter 16 "Patjhar mein Tooti Pattiyan" Multiple Choice Questions ‌MCQ with Answers

पाठ- पतझर में टूटी पत्तियाँ  प्रसंग- झेन की देन

Here is a compilation of Free MCQ  of Class 10 Hindi Sparsh book Chapter 16  Patjhar mein Tooti Pattiyan by Ravindra Kelekar.  Students can practice free MCQ  as have been added by CBSE in the new Exam pattern.


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गिन्नी का सोना

प्रस्तुत पाठ के उप-शीर्षक गिन्नी का सोना लेखक रवीन्द्र केलेकर जी के द्वारा लिखित है | इस प्रसंग के माध्यम से लेखक कहते हैं कि गिन्नी का सोना और शुद्ध सोना अलग-अलग होता है | आमतौर पर देखा जाए तो गिन्नी के सोने में थोड़ा सा ताँबा का अंश मिलाया जाता है, जिसकी वजह से यह ज्यादा चमकदार हो जाता है | जबकि शुद्ध सोने की अपेक्षा गिन्नी का सोना अधिक मजबूत भी होता है | 


परिणामतः ज्यादातर औरतें इसी के गहनें बनाया करती हैं | आगे लेखक कहते हैं कि ठीक इसी तरह शुद्ध सोने के समान ही शुद्ध आदर्श भी होते हैं | लेकिन कुछ लोग शुद्ध सोने रूपी आदर्श में व्यावहारिकता का थोड़ा सा ताँबा मिलाकर चलते हैं, जिन्हें हम 'प्रैक्टिकल आइडीयालिस्ट' के नाम से जानते हैं | आगे लेखक कहते हैं कि वक़्त के साथ-साथ उनके आदर्श भी पीछे हटने लगते हैं और व्यावहारिक सूझबूझ का ही वर्चस्व हो जाता है | अर्थात् सोना पीछे रह जाता है और केवल ताँबा आगे रह जाता है | लेखक के अनुसार, गाँधीजी बिल्कुल 'प्रैक्टिकल इडीयालिस्ट' थे | गांधीजी कभी अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं, बल्कि वे व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाकर उसकी अहमियत बढ़ा देते थे | अर्थात् गाँधीजी सोने में ताँबा मिलाकर नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ा देते थे | आगे लेखक कहते हैं कि व्यवहारवादी लोग हर काम को लाभ-हानि के आधार पर करते हैं | खुद ऊपर चढ़ें और साथ में दूसरों को भी ऊपर ले चलें, यह काम तो केवल आदर्शवादी लोगों ने ही किया है | जबकि व्यवहारवादी लोग तो सिर्फ समाज को नीचे गिराने का काम करते रहे हैं...||  
          

झेन की देन summary

प्रस्तुत पाठ के उप-शीर्षक झेन की देन लेखक रवीन्द्र केलेकर जी के द्वारा लिखित है | इस प्रसंग के माध्यम से लेखक कहते हैं कि वे एक बार जापान की यात्रा पर गए हुए थे | जब वे अपने एक दोस्त से पूछे कि यहाँ के लोगों को कौन सी बीमारी अत्यधिक होती है ? तो लेखक के सवाल पर उनके मित्र ने जवाब दिया 'मानसिक रोग' | आगे लेखक कहते हैं कि जापान के 80 प्रतिशत लोग मनोरोगी हैं | लेखक ने जब इस रोग का कारण जानना चाहा तो उन्हें अपने मित्र के द्वारा पता चला कि जापानियों के जीवन की रफ़्तार अत्यधिक बढ़ गई है | लोग चलते नहीं बल्कि दौड़ते हैं | अर्थात् महीनों का काम एक दिन में पूरा करने की कोशिश करते हैं | परिणामस्वरूप, एक समय ऐसा आता है, जब दिमाग़ी तनाव बढ़ जाता है | तत्पश्चात्, दिमाग़ काम करना बंद कर देता है और इस प्रकार मानसिक रोगी की संख्या बढ़ते चले जाते हैं | शाम के वक़्त जापानी दोस्त लेखक को 'टी-सेरेमनी' में ले गए | 



यह एक प्रकार का चाय पीने की विधि है, जिसे जापान में 'चा-नो-यू' कहते हैं | जहाँ पर लेखक अपने मित्र के साथ गए थे, वह एक छः मंजिली इमारत थी, जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारों वाली और चटाई की ज़मीन वाली एक खूबसूरत पर्णकुटी थी | बाहर पानी से भरा मिटटी का बर्तन था, जिससे उन्होंने हाथ-पाँव धोए | अंदर में बैठे 'चाजीन' ने उठकर उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह की ओर इशारा किया | तत्पश्चात्, उसने अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी | लेखक को सारी क्रियाएँ खूब भा रही थीं | वातावरण इतना शांत था की चाय का उबलना भी स्पष्ट कानों में गूँज रहा था | जैसे ही चाय तैयार हुई, चाजीन ने चाय को प्यालों में भरा और उसे तीनो दोस्तों के सामने पेश कर दिया | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, वे लोग ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद को लगभग डेढ़ घंटे तक पीते रहे | लेखक को ऐसा आभास हो रहा था, मानो वे अनंतकाल में जी रहे हों | उन्हें सन्नाटे की भी आवाज़ स्पष्ट सुनाई देने लगी थी | चाय पीते-पीते लेखक के दिमाग से दोनों काल विलुप्त हो गए थे | सिर्फ वर्तमान पल सामने था, जो की अनंतकाल जितना विस्तृत था | लेखक के अनुसार, वर्तमान ही सत्य है और हमें उसी में जीना चाहिए | सही मानो में असल जीना किसे कहते हैं, लेखक को उस दिन एहसास हुआ...|| 




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